Wednesday 2 April, 2008

वाह! फियोना के दीवानों वाह!

वाह फियोना के दीवानों वाह
अफसोस, प्रीतीश नंदी जैसे लोग जिन्होंने साठ के दशक में एक कवि के रूप में शुरुआत की थी और आज मीरा बाई नॉट आउट और प्यार के साइड इफेक्ट्स जैसी बेसिर-पैर की फिल्में बना रहे हैं, उन्हें फियोना जैसी मांओं की बड़ी चिंता है, उनकी नजर में बच्चों का शराब सेवन बुरा नहीं है, बचपन में सेक्स करना बुरा नहीं है, बच्चों का देर रात तक बाहर रहना बुरा नहीं है। मैंने डेली न्यूज में 19 मार्च को एक लेख लिखा था, अम्मा, तू क्यों देर से जागी? इसके जवाब में प्रीतीश नंदी का लेख दूसरे ही दिन दैनिक भाष्कर में छपा, पीडि़त पर उंगली उठाना बंद हो। खूब सारा पैसा मिलने और राज्यसभा की सदस्यता मिलने के बाद नंदी जी भटक गए हैं, आश्चर्य होता है, शिवसेना जैसी पार्टी ने नवधनाढय प्रीतीश नंदी को राज्यसभा में भेजने लायक समझा। बिहार के भागलपुर जैसे छोटे शहर में जन्मे प्रीतीश नंदी आजकल मुंबई और दिल्ली की जंगल और रेव पार्टियों के पक्षधर हो गए हैं! दुख होता है, वे बच्चों और वयस्कों को अलग-अलग देखने की दृष्टि भी खो चुके हैं। नंदी जैसों का वश चले, तो गलियों में बच्चे खुलेआम शराब पीएंगे, सेक्स करेंगे और उन जैसे लोग कहेंगे, क्या फर्क पड़ता है, जो बिंदास जी रहा है, उसे बिंदास जीने दो। माफ कीजिए, नंदी जैसे कई लोग हैं, जो उस असुरक्षित दुनिया के पक्षधर हैं, जो बच्चों को समय से पहले जवान बना रही है। नंदी जैसों को बालिग और नाबालिग का फर्क तो समझना चाहिए। मट्टू शिवानी या शशि के मामले स्कारलेट से बिल्कुल अलग हैं, मट्टू , शिवानी, शशि पूर्ण बालिग हैं, उन्हें उनके किए के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, लेकिन स्कारलेट तो बच्ची थी, उसके किए की जिम्मेदारी तो उसकी मां पर आती है। आठवी कक्षा की छात्रा स्कारलेट की बात चलेगी, तो पालन पोषण की चर्चा जरूर होगी, पेरेंतिंग में कमियां खोजी जाएंगी, स्वाभाविक है। गुड़गांव के स्कूल में हत्या होती है, हत्या करने वाले बच्चे के पिताश्री फरार हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें पता है, बच्चे के किए के लिए वे भी जिम्मेदार ठहराए जाएंगे। फियोना की बेड पेरेंतिंग पर हमारे देश में कम और इंग्लैंड में ज्यादा लिखा गया। यह हमारे सॉफ्ट मीडिया का कमाल है कि फियोना के खिलाफ सरकार को मामला बनाने से रोका गया। फिर भी मीडिया को इतना भी सॉफ्ट नहीं हो जाना चाहिए कि वह 15 वषीय स्कारलेट के वयस्क कृत्यों के बचाव में उतर आए।
अपने बच्चों के बारे में सोचिए, क्या आप चाहेंगे कि आपका हाईस्कूल जाने वाला बच्चा या बच्ची स्कारलेट की तरह बिंदास हो जाए, क्योंकि प्रीतीश नंदी जैसे लोग गोद से उतरे बच्चे को भी बिंदास रूप में देखना चाहते हैं। उस उपभोग प्रधान जीवन शैली, पिटे हुए खोखले जीवन मूल्यों को भारत में न्यायोचित ठहराया जा रहा है, जिस शैली से पश्चिम के लोग भी तंग आने लगे हैं। फियोना भारत में आश्रय तलाश रही है और हम फियोना के देश पहुंचने का लालायित हैं। शशि, शिवानी बिंदास जीएं कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन स्कारलेट को बिंदास जीने की इजाजत न कानून देता है, न धर्म, न समाज, जो परिवार उसे बिंदास जीने की इजाजत दे रहा था, उस परिवार को निश्चित रूप से दोषी ठहराना चाहिए।
बच्चों की सुरक्षा के लिए घेरे इसलिए बनाए जाते हैं, लक्ष्मण रेखाएं इसलिए खींची जाती हैं, क्योंकि उन्हें सुरक्षित रखना होता है। माफ कीजिए, जो लोग अपने बच्चे को सुरक्षा नहीं दे सकते, वे बच्चे पैदा करके हैवानियत का परिचय देते हैं। एक सवाल यह भी है कि गोवा कातिलों का अड्डा क्यों बना, इसका जवाब प्रीतीश नंदी और उनके सांसद मित्रों को देना चाहिए। प्रीतीश नंदी हमारी सत्ता व्यवस्था का ही एक हिस्सा हैं, यह वही सत्ता है, जो अपने लिए गोवा जैसे अंधेरे कोने बनाती है। प्रीतीश नंदी जैसे लोग दोनों तरफ मलाई खाना चाहते हैं, जनता के बीच जाकर कलम उठा लेते हैं और फाइव स्टार में पहुंचकर या अपनी फिल्मों के जरिये न्यू गोवन कल्चर को विस्तार देते हैं।

1 comment:

राजीव जैन said...

ब्‍लॉग जगत में धुंआधार शुरुआत के लिए बधाई

आपकी बात से पूरी तरह सहमत।
हमें गोवा की स्‍वच्‍छंदता पर भी विचार करना चाहिए