Sunday 13 April, 2008

मशाल पर बेमिसाल मारामारी

आज से 52 साल पहले मेलबोर्न में जब ओलंपिक खेलों का आयोजन होना था, तब भी मशाल दौड़ का विरोध हुआ था। बैरी लारकिन के नेतृत्व में नौ ऑस्ट्रेलियाई छात्रों ने मशाल दौड़ का विरोध किया था। सिडनी में एक सामानांतर मशाल दौड़ आयोजित हुई थी। उस छोटे से विरोध प्रदर्शन का मकसद ओलंपिक टॉर्च को ज्यादा महत्व देने से बचने का संदेश देना था। कहा गया कि नाजियों ने अपने प्रचार के लिए मशाल दौड़ को पॉपुलर बनाया था। तब मशाल दौड़ के उस विरोध को नजरअंदाज कर दिया गया। अब मशाल दौड़ जब भी ओलंपिया से ओलंपिक के लिए निकलती है, तो आयोजक देश ऐसी हवा बनाता है, मानो उसके अश्वमेध का घोड़ा चल पड़ा हो। चीन की सत्ता को विश्व में सहजता से स्वीकार करने वाले कम हैं, अत: चीनी सत्ता ने मशाल दौड़ को कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण बना दिया है। इतनी लंबी (137000 किमी।) मशाल दौड़ कभी आयोजित नहीं हुई थी। 21,880 लोगों का मशाल लेकर दौड़ना भी एक रिकॉर्ड है। 1936 में केवल 8 दिन तक दौड़ हुई थी, लेकिन इस बार 130 दिन की दौड़ हो रही है। जब मशाल वियतनाम से चीन पहुंचेगी, तब चीनी सरकार इसे तिब्बत सहित पूरे देश में घुमाएगी। मशाल करीब 116 चीनी शहरों और कस्बों से होकर गुजरेगी। ओलंपिक मशाल के माध्यम से चीनीयों को शायद यह बताया जाएगा कि चीन की ताकत को पूरी दुनिया ने मंजूर कर लिया है, क्योंकि लाल चीन महान है। जाहिर है, मशाल दौड़ आज किसी भी नजरिये से मानवीय सद्भावना या देशों के बीच भाईचारे का प्रतीक नहीं है। इस दौड़ में भाग लेने वालों को आयोजक देश का समर्थक माना जाता है। फिलहाल मशाल दौड़ के विरोधियों को तिब्बत समर्थक माना जा रहा है। लंदन और पेरिस में मशाल को बुझाने के प्रयास हुए हैं। पेरिस में विरोधियों को कामयाबी मिली है, मशाल दौड़ को सफल बनाने के लिए चीन के कमांडो मशाल के साथ-साथ दौड़ रहे हैं। मशाल 17 अप्रेल को नई दिल्ली आएगी और आशंका है, तिब्बती समुदाय जोरदार विरोध करेगा। तिब्बतियों को भारतीय फुटबॉलर बाइचुंग भुटिया और पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी का समर्थन मिला है, इन दोनों ने मशाल दौड़ में भाग लेने के आमंत्रण को ठुकराया है। तिब्बतियों के हौसले बुलंद हैं और चीनीयों की नींद उड़ी हुई है। सबसे पहले तो ताइवान ने अपने यहां मशाल दौड़ करवाने से इंकार कर दिया था, क्योंकि उसे पता था, अगर उसके यहां मशाल दौड़ हुई, तो ताइवान पर चीनी अधिकार के दावे को मजबूती मिलेगी। खैर, तिब्बती लाख हल्ला मचाएं, मशाल दौड़ होकर रहेगी, खेलों में राजनीति होकर रहेगी। कोई शक नहीं, खेलों के दौरान चीनी सत्ता प्रतिष्ठान विश्व बंधुत्व का नहीं, बल्कि अपने लोगों की देशभक्ति का खुलकर प्रदर्शन करेगा और यह बताने की कोशिश करेगा कि चीन सर्वोत्तम है। चौंकिए मत, क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है।

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