Thursday 1 January, 2009

उम्मीद में खुशहाल

हम आ गए
नए बरस मे ऐसे
जैसे कोई जर्जर मकान छोड़
नए मे आता है
सुकून का अहसास संजोये
मानो छोड़ आया हो पीछे
बहुत कुछ जर्जर
ढहने को तत्पर
बेकार और लचर
---
पुरानी पतलूनों की फटी जेबें
जो सिल न सकीं
छुटी हुई नौकरियों के चिथड़े कागजात
सिफारिशों के आभाव मे हल्का और
पुराना पड़ता बायोडाटा
उड़ रहा है
जैसे उडी थी विदर्भ के अकाल मे धूल
जिसे पॅकेज से झाड़ देने की कोशिश हुई
और नाकाम हुई
जैसे नाकाम हुई कई कोशिशें
आसूं और खून के निशाँ
जो छूट न सके
बने रह गए
पड़ोसियों के हाथ खून मे
सने रह गए
साल भर संगीन
तने रह गए
---
जो भी है पुराना
सहेजने के लिए भले हो
इस्तेमाल के लिए नहीं होता
यह कलेंडर ने बताया हैं
जो सामने नुमाया है
नया साल
उम्मीद में खुशहाल
मालामाल.

4 comments:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया . उम्मीद पे दुनिया कायम है . लिखते रहिये. नववर्ष की बधाई.

विधुल्लता said...

पुरानी पतलूनों की फटी जेबें
जो सिल न सकीं
छुटी हुई नौकरियों के चिथड़े कागजात
सिफारिशों के आभाव मे हल्का और
पुराना पड़ता बायोडाटा
achey shabd...navvarsh ki shubhkaamnaayen

Gyanesh upadhyay said...

main dhany hua
abhaar

surjeet said...

पुरानी पतलूनों की फटी जेबें
जो सिल न सकीं
छुटी हुई नौकरियों के चिथड़े कागजात
सिफारिशों के आभाव मे हल्का और
पुराना पड़ता बायोडाटा
उड़ रहा है
जैसे उडी थी विदर्भ के अकाल मे धूल
जिसे पॅकेज से झाड़ देने की कोशिश हुई
और नाकाम हुई
जैसे नाकाम हुई कई कोशिशें
bahut shandar, nav varsh main kavita khoob phale-fule. shubhkamnain