Saturday 21 March, 2009

माइक पाण्डेय और विश्व जल दिवस


माइक पाण्डेय मतलब पर्यावरणविद्, ग्रीन ऑस्कर विजेता, कैमरामैन, फिल्मकार, अर्थ मैटर्स जैसे सफल कार्यक्रम के निर्माता, निर्देशक, एंकर। उन्होंने पर्यावरणविद के रूप में सबसे ज्यादा काम किए हैं। कैमरा या स्पेशल इफेक्ट का काम तो उनके निर्देशन में उनकी टीम ही करती है। कैमरामैन के रूप में उन्होंने `रजिया सुल्तानं फिल्म में सबको चौंकाया था। धर्मेन्द्र , हेमा और न जाने कितनी फिल्मी हस्तियों के करीबी माइक पाण्डेय मूलतः तो गोरखपुर के पास के हैं, लेकिन कीनिया में जन्म हुआ, इंग्लैंड और अमेरिका में पढ़ाई की। उन्हें काम के लिए भारत ज्यादा व्यापक लगा, वे यहीं बस गए। खूब काम किए। पर्यावरणविद के रूप में वनों और लोक जीवन को करीब से देखने वाले विशेषज्ञ के रूप में। इसमें कोई शक नहीं है कि हिन्दी में पर्यावरणविद् को वैसे भी बहुत ख्याति नहीं मिल पाती है, क्योंकि हम अभी भी पर्यावरण या वन के महत्व को ढंग से नहीं समझ सके हैं।

माइक पाण्डेय से मेरी एक सीधी मुलाकात है। अमर उजाला में रहते हुए। चिराग दिल्ली में उनके निवास पर लंबी बातचीत मुझे काफी कुछ याद है। उन्होंने पृथ्वी के प्रति मुझे सोचने पर विवश कर दिया था। उन्होंने ही मुझे बताया था, स्विट्जरलैंड में ऐसी झीलें हैं, जिनके पानी को सीधे पीया जा सकता है और अमेरिका दुनिया का सबसे प्रदूषित देश है। उन्होंने ही मुझे समझाया था कि बाघ बिना पृथ्वी पर कोई नहीं रह पाएगा। शनिवार, 21 मार्च को फिर उनसे फोन पर लंबी बात हुई, वे मुझे पहले से भी ज्यादा चिंतित नजर आए। पृथ्वी और पर्यावरण के प्रति प्रेम और दर्द से भरे हुए। बातचीत में उनकी निराशा साफ महसूस हो रही थी। एक रोष भी था।

उन्होंने कहा, `कालिदास की कथा सब जानते हैं, वे जिस डाल पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे। हम आज के कालिदास हैं। हम जीवन की जिस डाल पर बैठे हैं, उसी को काट रहे हैं। पृथ्वी हमारे लिए है, पानी हमारे लिए है, लेकिन हम दोनों को नष्ट कर रहे हैं। अपनी खाद्य सुरक्षा और जीवन चक्र को मुसीबत में डाल रहे हैं। जहां तक भारत की बात है, तो पहले भारत ऐसा नहीं था। महाभारत काल में भी जगह-जगह कुंड, सरोवर का जिक्र आता है। देश में अनेक गांव हैं, जहां पोखर-सरोवर आज भी हैं, लेकिन हम उन्हें खत्म करते जा रहे हैं। हमारी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ही एक समय 500 कुंड थे, लेकिन उनको पाट दिया गया। उन पर कॉलोनियां बना दी गई। अब दिल्ली पानी के लिए तरस रही है। वहां जरूरत भर का पानी नहीं मिल पा रहा है, तो बाकी देश की कल्पना कर लीजिए। न जाने कितने कुंड और सरोवर पाट दिए गए हैं। क्या हम आज के कालिदास नहीं हैं?

उन्होंने जानकारी दी। - नदियों को बचाने के लिए केवल हिम पर्वतों का बचाना ही जरूरी नहीं है, जंगलों को भी बचाना जरूरी है। दक्षिण भारत में करीब 300 नदियां जंगलों से ही निकलती हैं। माइक आजकल कुछ आध्यात्मिक और पारंपरिक ज्ञान प्रेमी भी हो गए हैं। उन्होंने बताया, `गौतम बुद्ध ने कहा था, `पृथ्वी से उतना ही लीजिए, जितना जरूरी है। गुरुनानक देव ने कहा, `एक परिवार की तरह रहिए। लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हमें अपने महान पूर्वजों की सलाह की कोई परवाह नहीं है। हम न केवल अपने पूर्वजों का अनादर कर रहे हैं, बल्कि पृथ्वी पर जीवन का अनादर कर रहे हैं। पानी के लिए पैसा नहीं है, लेकिन इराक में 4 अरब डॉलर प्रतिदिन युद्धोन्माद पर खर्च किया जा रहा है। हम कहते हैं, युद्ध नहीं होना चाहिए, लेकिन एटम बम बनाते हैं। दिक्कत यहीं है। जो जरूरी है, वह नहीं किया जा रहा है और जो जरूरी नहीं है, उस पर धन लुटाया जा रहा है।

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