Friday 25 June, 2010

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो।
चन्दन खाट कै खटोलना तापर दुल्हिन सूतल हो ।
उठो सखी मोर मांग सवारों दूल्हा मोसे रूठल हो
चारी जाने मिली खाट उठाइन चहुँ दिस धू धू उठल हो।
आये जमराज पलंग चढ़ी बैठे नैनं आंसू टूटल हो।
कहत कबीर सुनो भाई साधो जग से नाता टूटल हो।
कौन ठगवा नगरिया लूटल हो .

कबीर की ये पंक्तियाँ देर तक और दूर तक पीछा करती हैं । झकझोर कर रख देते हैं कबीर । इतना रेडिकल कवि कोई दूसरा नहीं दीखता । आखिर कबीर इतने बड़े कवि कैसे हैं ? कभी सोचता हूँ तो यही जवाब मिलता है कि कबीर केवल लिखते नहीं थे वे अपने लिखे हुए को जीते थे इसलिए वे उस ऊंचे मुकाम पर नजर आते हैं जहाँ कोई दूसरा कवि नजर नहीं आता । इस देश मे कबीर से बड़ा कवि और गाँधी जी से बड़ा नेता नहीं हो सकता । दोनों मे एक ही साम्यता है कि दोनों कथनी और करनी के भेद को अपने जीवन मे मिटा देते हैं । दोनों की कथनी करनी में ही नहीं बल्कि रहनी में भी साम्यता है । कथनी करनी और रहनी की साम्यता ही वास्तव में किसी को महान बनाती है।

आज कबीर जयंती है दुःख होता है उन्हें याद करने वालों की संख्या क्यों कम है ?

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