Monday 26 December, 2011

असुरक्षित मोबाइल

बड़े अफसोस की बात है कि भारत में कई कंपनियां अपने ग्राहकों के स्वास्थ्य व जीवन के साथ खिलवाड़ करती हैं, लेकिन इससे ज्यादा शर्मनाक व चिंताजनक बात तो यह है कि परोक्ष रूप से सरकार भी उनका साथ देती है। सरकार ने मोबाइल कंपनियों के लिए अनिवार्य कर दिया है कि वे हैंडसेट में विकिरण स्तर देखने की सुविधा दें। सरकार का यह कदम अच्छा तो लगता है, लेकिन वास्तव में अधूरा है। सरकार ने विकिरण घटाने के पुख्ता इंतजाम नहीं किए हैं। इसका नुकसान यह होगा कि मोबाइल कंपनियां ऎसे हैंडसेट बाजार में उतारेंगी, जो गलत जांच करेंगे और विकिरण को वास्तविक स्तर से कम दिखाएंगे। मोबाइल कंपनियों के लिए विकिरण घटाना अनिवार्य नहीं हुआ है, बल्कि सिर्फ दिखाना अनिवार्य हो गया है। स्वास्थ्य और जीवन से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। कम से कम कोई आधुनिक उत्पाद या तकनीकी जरूरत तो कभी भी जिंदगी के मुकाबले भारी नहीं पड़ सकती, लेकिन यह हमारे देश में एक बड़ा दुर्भाग्य है कि सरकारों को अपने लोगों की पर्याप्त चिंता नहीं है। जनता के स्वास्थ्य की कीमत पर भी रूपए-पैसे का कोई धंधा चमक रहा हो, तो सरकार उसे रोकने की बजाय बढ़ावा ही देती है!
देश के असंख्य भोले-भाले लोग इस बात से अत्यंत प्रसन्न हैं कि उनके हाथ में मोबाइल सेट आ गया है, अब वे कहीं से भी किसी से भी बात कर सकते हैं, लेकिन ये लोग नहीं जानते कि मोबाइल हैंडसेड से एक ऎसी इलैक्ट्रो मैग्नेटिक ऊर्जा निकलती है, जो स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचाती है। सरकार ने स्वयं यह इंतजाम किया है कि किसी मोबाइल के विज्ञापन में बच्चे या गर्भवती महिला को नहीं दिखाया जा सकता, लेकिन सरकार को मोबाइल फोन सेवा से लोगों की सुरक्षा के लिए बहुत कुछ करना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मोबाइल के मसले पर गठित अंतर्मत्रालयी समिति की ज्यादातर अच्छी अनुशंसाओं को सरकार ने नकार दिया है। कुल मिलाकर पिछले दिनों बहुत चिंताजनक संकेत उभरे हैं, कंपनियां मोबाइल टावर लगाने की आजादी में खलल नहीं चाहतीं, वे मोबाइल सेवा को सुरक्षित नहीं बनाना चाहतीं। वे न्यूनतम लागत-अघिकतम मुनाफे के पीछे भाग रही हैं, सुरक्षित तकनीक पर खर्च करना नहीं चाहतीं। ऎसी स्थिति में लोगों को ही संभलना होगा। सरकार ने भी कहा है कि फोन पर बातचीत की बजाय वह एसएमएस करने को बढ़ावा देगी, लेकिन क्या इस कदम से सरकार का कत्तüव्य पूरा हो जाता है? पूरी कीमत चुकाकर भी जब सही व सुरक्षित फोन सेवा नहीं मिल रही है, तो क्या इसके लिए भी लोगों को आंदोलन करना पड़ेगा?


As editorial in rajasthan patrika today, written by me. 26-12-2011

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