Monday 27 February, 2012

बिना जमीन का आसमान


देश भर में बड़ा शोर है कि सरकार ने शिक्षा का अधिकार दे दिया है, शिक्षा मुफ्त मिलेगी। हर बच्चे को स्कूल तक खींच लाने का दावा है। ऑल इंडिया एडिटर्स कांफ्रेंस पुड्डुचेरी में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री डी. पुरंदेश्वरी ने भी शिक्षा का अधिकार (आरटीई) का गुणगान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, लेकिन जो सरकार बड़े-बड़े काम करने में लगी है, वह आधारभूत कमियां छोड़ती चल रही है। क्या वाकई शिक्षा का परिदृश्य खुशनुमा है? क्या निजी स्कूल गरीब बच्चों को प्रवेश देने के लिए तैयार हो गए हैं? आधारभूत बात करें, तो प्री स्कूल एजुकेशन या प्ले स्कूल को लेकर सरकार में कोई चिंता नहीं है। मैंने राज्यमंत्री महोदया से पूछा कि क्या आपको नहीं लगता कि छोटे-छोटे बच्चों व उनके अभिभावकों का शोषण हो रहा है? कथित प्ले स्कूल हजार से लाखों रुपए तक वसूल रहे हैं, लेकिन इतनी फीस पर क्या किसी प्रकार की टैक्स रियायत देने पर केन्द्र सरकार विचार कर रही है? उन्होंने बताया, ‘आरटीई में किसी तरह के फीस की वसूली नहीं है। जहां तक प्ले स्कूल या प्री स्कूल की बात है, तो यह विषय महिला व बाल विकास मंत्रालय के तहत आता है।’ दरअसल इस मामले में मानव संसाधन विकास मंत्रालय कुछ भी खास नहीं कर रहा है और महिला बाल विकास मंत्रालय को आंगनबाडिय़ों व महिला योजनाओं से फुर्सत नहीं है। गली-गली में प्ले स्कूल खुल रहे हैं। इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट स्कीम में प्री-स्कूल अनौपचारिक शिक्षा का उल्लेख भर है। सरकार को पता होना चाहिए कि प्ले स्कूल अब केवल ‘प्ले’ से नहीं जुड़े हैं, वे बच्चों को बाकायदे कागज-कलम के साथ औपचारिक शिक्षा दे रहे हैं, जमकर लिखित पढ़ाई हो रही है, खूब होमवर्क दिए जा रहे हैं। कांफ्रेंस में सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर भी सवाल उठे, कोई ठोस जवाब नहीं मिला। नैतिक शिक्षा को लेकर भी सवाल उठा, जवाब मिला, वेल्यू एजुकेशन की चर्चा नेशनल करिकुलम में कर दी गई है। यह हमारी शिक्षा में एक बड़ी कमी है कि नैतिक शिक्षा को लगभग भुला दिया गया है।
आसमान पर पहुंचने की जल्दी में जमीनी सच्चाइयों की उपेक्षा का यह केवल एक उदाहरण नहीं है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली(पीडीएस) का भी यही हाल है। केन्द्रीय राज्यमंत्री के.वी. थॉमस विस्तार से बता रहे थे कि पीडीएस का कंप्यूटरीकरण व बायोमेट्रिकीकरण हो रहा है। कुछ राज्यों ने अच्छा काम किया है। किन्तु आधारभूत सवाल तो यह है कि आज कितने लोग पीडीएस से खुश हैं। प्रधानमंत्री भी जानते हैं और थॉमस भी कि पीडीएस अगर ठीक नहीं हुआ, तो खाद्य सुरक्षा अधिकार बेकार चला जाएगा। मैंने के.वी. थॉमस से पूछा, आजादी मिले ६४ साल हो गए, आप भी बचपन से सुन रहे हैं कि पीडीएस को ठीक किया जा रहा है, मैं भी बचपन से सुन रहा हूं कि पीडीएस को ठीक किया जा रहा है, यूपीए को सरकार संभालते ८ साल हो गए, बार-बार कहा जाता है, पीडीएस को ठीक किया जा रहा है, आप मुझे बताइए कि पीडीएस का काम कब तक फुल प्रूफ या पुख्ता हो जाएगा? इस आधारभूत सवाल के जवाब में थॉमस अपने अधिकारी की मदद से यह बताने लगे कि कहां कहां कितना काम हुआ है, यानी आसमान की आकांक्षा में फिर एक जमीनी जवाब का इंतजार रह गया।

published on 19-2-2012 in patrika and rajasthan patrika

1 comment:

वृजेश सिंह said...

शिक्षा की गुणवत्ता पर आपको क्या जवाब मिलेगा ज्ञानेश जी, जब सरकार खुद क्वालिटी ऑफ एजूकेशन को क्वीलिटी ऑफ लॉइफ से परिभाषित करती है। सबसे पहले तो जीवन की गुणवत्ता को परिभाषित किया जाय.....फिर शिक्षा की गुणवत्ता पर बात हो सकती है।