Sunday 30 June, 2013

आपको हुई असुविधा के लिए खेद है

रेल विकास के बारे में पूरी ईमानदारी से कम ही सोचा जाता है. लगता है, रेल नैतिक दबावों से भी परे है, सामंतशाही चल रही है. यात्रियों की चिंता कम से कम है. बार बार हमे खेद है - हमे खेद है बोलकर रेलवे काम चला लेता है. अब रेलवे ने अपने यात्रियों से धन दोहन के लिए एक नया कदम उठाया है, टिकट रद्दीकरण के 15 साल पुराने नियम को बदल दिया गया है। रेलवे का यह निर्णय जब 1 जुलाई को लागू हो जाएगा, तब दलालों पर पता नहीं कितना अंकुश लग सकेगा, प्रतीक्षा सूची में शामिल यात्रियों को पता नहीं कितनी राहत मिल पाएगी, लेकिन आखिरी समय में यात्रा रद्द करने वाले यात्रियों को बड़ा नुकसान होगा। यात्रा से 48 घंटे पहले टिकट रद्द करवा लिया, तो ठीक, वरना 25 से 50 प्रतिशत तक किराया राशि रेलवे काट लेगा। इसके अलावा यदि ट्रेन की रवानगी के 2 घंटे बाद आप रिफंड लेने जाएंगे, तो आपको एक भी पैसा नहीं मिलेगा। बड़ी बात यह है कि रेलवे को पहले वाली व्यवस्था में भी फायदा था व अब वाली व्यवस्था में तो और भी फायदा होगा। यह बात सब जानते हैं कि रेल टिकट की दलाली की व्यवस्था धड़ल्ले से चल रही है, रेलवे जो कदम दलालों को रोकने के लिए उठाता है, उसका खमियाजा सारे यात्रियों को भुगतना पड़ता है। क्या यह न्यायपूर्ण है, यहां सजा केवल अपराघियों को नहीं मिल रही है, सजा ऎसे निर्दोष लोग भी भुगतेंगे, जो किसी न किसी मजबूरी की वजह से अपनी यात्रा रद्द करेंगे। रेलवे का क्या है, रेलवे तो लोगों की मजबूरी से भी कमाई करने वाला विभाग है। एक बड़ा सवाल यह भी है कि आख़िर रेलवे को दलालों या एजेंटों की जरूरत क्यों है? आमतौर पर जिस कंपनी का माल नहीं बिकता वह एजेंट रखती है रेलवे के साथ तो ऐसा नहीं है, उसे तो खूब कमाई होती है. लोग उसकी सेवा के लिए इंतज़ार करते हैं रेलवे विभाग तो पैसे लेने के बावजूद सबको खुश नहीं कर पाता है, कभी रेलवे के पास कम काउंटर थे, लेकिन अब जब एसएमएस के जरिये भी टिकट बनने लगेगा तो एजेंटों की जरूरत क्यों रहेगी ? एजेंट सिस्टम बंद होना चाहिए ? रेलवे और यात्रियों के बीच करोड़ों रुपये इधर-उधर हो रहे हैं इसकी जरूरत क्यों है? किसको है? ई टिकट, एसएमएस टिकट के दौर में क्या यात्रियों को एजेंट चाहिए ? क्या सरकार ने इसका अध्ययन करवाया है ? प्रतीक्षा सूची वाले यात्रियों के बारे में तो रेलवे ने कभी सोचा भी नहीं है, अगर कुछ फैसला किया, तो उसे शायद ही कभी लागू किया। ऎसा कदापि नहीं है कि आखिरी समय में टिकट के रद्द होने से रेलों में सीटें खाली रह जाती हैं, प्रतीक्षा सूची में सैकड़ों लोग होते हैं, साधारण प्रतीक्षा सूची के साथ ही तत्काल की प्रतीक्षा सूची भी होती है। खराब, लेटलतीफ रेल सेवाओं की वजह से यात्रियों को कई नुकसान झेलने पड़ते हैं, लेकिन इन यात्रियों के बारे में रेलवे कितना सोचता है? यात्री हैं, उनका क्या, सैकड़ों यात्री रोज निराश होंगे, तो हजारों नए आएंगे। रेलवे तो इस देश में यात्रा करने वालों के लिए मजबूरी है। यह दुख की बात है, ऎसा किसी व्यवसाय में नहीं होता, जैसा रेलवे में होता है। आज रेलवे बिना सेवा के भी पैसे वसूल लेने वाला विभाग बन गया है। आप थोड़ा सोच कर देखिये अगर कार बेचने वाली कंपनियाँ भी यही करें तो क्या होगा, आप ने दो महीने पहले एक कार बुक कराई, कार लेने से एक दिन पहले बुकिंग रद्द करा दी, तो क्या आप चाहेंगे कि कार कंपनी आप से 25 या 50 प्रतिशत कीमत वसूल ले, यह कहकर कि आपने बुकिंग रद्द करा दी इसलिए पैसे दिजिये. एक और बात, व्यवसाय की दुनिया में जमाखोरी और कालाबाजारी प्रतिबंघित है, लेकिन रेलवे में मंजूर है! गौर कीजिए, तत्काल के तहत रेलवे कुछ टिकट जमा करके रखता है और जरूरतमंद लोगों को अंत समय में ब्लैक में बेचता है, क्या यह अनैतिक नहीं है ? एक जरूरी सेवा के साथ ऎसे मजाक और धूर्तता के निदान के बारे में यात्रियों को भी सोचना चाहिए और रेलवे को भी।

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